बुलन्द हो इरादे तो राह निकलती है पर्वतों से भी, कि हौसलों के आगे तो सारा जमाना झुकता है |
जोर जमाने में कितना है ये देखना बाकि है, जो कहते हैं अपने, उन्हे आजमाना बाकि है, बाकि है "दीप" घने साये से निकलना और निकालना, रकीबों को असली पहचान दिखाना बाकि है |
कहते हैं वो सिर्फ नेता-पुलिस करप्टेड है, पर वाईरस करप्शन का हर एक में इन्जेक्टेड है, किस-किस से बच के चले सोचता है ये "दीप", इस रोग से यहाँ हर एक शख्स इन्फेक्टेड है ।
ठण्ड पाँव पसार चुका है गहराई में, दुबक गये हैं सब अपनी-अपनी रजाई में, चलो चले एक ऐसी दुनिया, कहते हैं जिसे स्वप्न नगर, खो जाते हैं निंदिया रानी के अंगड़ाई में |
खून में आज उबाल आने दो, थोड़ा-सा फिर बवाल होने दो |
देखो सूरज की किरणों को, वो हर आशा का संचार लेकर आती है, हर अंधेरे का अंत प्रकाश में होता है, ये हर रोज हमें सिखलाती है |
जा रहा है गत वर्ष, आ रहा है नव वर्ष; सबका ही हो भला, और सब रहें सहर्ष |
जमाने के हर कदम से कदम मिलाता हूँ, कभी हँसता हूँ खुद, कभी औरों को हँसाता हूँ । आता हुआ वक्त रखुँ सबके लिए यूँ ही हँसता हुआ, नव वर्ष के पहले दिन यह बीड़ा उठाता हूँ ।
बादल बना है दुश्मन, छुपा रखा है चाँद को, चाँदनी के इंतजार में कहीं रात न गुजर जाए ।
जानता हूँ दुनिया की हर एक रीत लेकिन, अनजान बने रहना ही यहाँ बेहतर विकल्प है |
ऐ इंसान !! सीख लिया गिरगिट की तरह रंग बदलना, कुत्तों से थोड़ी वफादारी भी सीखी होती; जिन्दगी निभाने के नाम पे कर चुके सारे ओछे कर्म, असली वाली थोड़ी दुनियादारी भी सीखी होती |
आँखों पे छाये परदे को हटा के भी देखो, ये दुनिया भी बेहद हसीन नजर आयेगी; दिल होगा कुंभलाया, सब होगा बदरंग, मुस्कान के साथ शमाँ रंगीन नजर आयेगी |
वो कहते हैं कि बड़े शरीफ हैं हम, दिल में भक्ति के दिए हर वक्त जलते हैं; जालसाजी भी करते हैं भगवान का नाम लेकर, चोरी करने को भी दही खा के निकलते हैं |
राम नाम की बेला में, उठ जा बंदे शौक से; सेहत चंगी कर थोड़ी, घुम आ थोड़ा चौक से ।
माना की ज़माना साथ नहीं, पर कारवां तो शुरू एक से ही होता है; सच है कि सब स्वार्थी हैं बने, पर सबका भला तो एक बन्दे नेक से ही होता है |
पलकें झुकाना भी उनका अजीब है, हर आदा उनका दिल के करीब है; मनमोहिनी है उनका अंदाज-ए-बयाँ, पायल का भी उनका अपना नसीब है ।