मेरी शायरी
-प्रदीप कुमार
Thursday, May 26, 2011
सपने होते ही हैं दिल-ए-अंजुमन को सजाने के लिए ऐ "दीप",
पर जरुरी नहीं कि हर आरजू पूरी ही हो जाए ।
रेत को चाहो तो मुठ्ठी मे भरकर उठालो,
अंततः हाथों में रेत के कण बस कुछ ही रह पाए ।
1 comment:
Shalini kaushik
said...
bahut khoob.aapka har sher lajawab hai.
May 26, 2011 at 12:34 PM
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1 comment:
bahut khoob.aapka har sher lajawab hai.
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