पहचान उनकी होती है ऐ "दीप" जो कि महान हैं,
हम तो बस एक अदना सा इंसान हैं;
पर हम भी किसी के दिल के बादशाह हैं,
अपनी अलग कायनात के शहंशाह हैं ।
खुश हूँ कि धरातल पर का एक इंसान हूँ,
भगवान के नियति का कद्रदान हूँ;
जिंदगी तो कुछ क्षणों की मेहमान है,
सफल वही जो झेलता तूफान है ।
मानव होने का मुझको गुरुर है,
परहितकारी बनूँ ये शुरुर है;
अपनो का पेट भर लेता हर जीवित जान है,
मनुष्य वही पर अश्रु में जिसके प्राण है ।
2 comments:
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pradeep ji
bahut bahut achhi lagi aapki yah prastuti
ek insaan me jo guun hone chahiye vah aapki kavita me purntaya parilxhit hoti hai .
bahut hi badhiya
mere khayal se iska shhirshak ---
jivan ki kadra ya insaan tu khud ko pahchaan honi chahiye.aage aap jaisa sochen .thoda samay lagega.
poonam
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