मेरी शायरी
-प्रदीप कुमार
Saturday, September 24, 2011
जीतकर ईलाके में जो कभी दर्शन भी नहीं देते,
चुनाव से पहले भीख माँगने आ जाते हैं मुँह उठा के |
जब जब तेरे आगोश में आया,
दिल का हर दर्द यूँ चुटकी में भुलाया |
Thursday, September 15, 2011
किसी ने कहा सब कुछ ख़रीदा नहीं जा सकता,
बाज़ार में देखा तो हर चीज़ ही बिकती है |
Wednesday, September 14, 2011
ढ़ुँढ़ती है नजरे तुझे हर दिन और हर रात,
आईने में भी आँखे अब तो तुझे तलाशती हैं |
हिंदी मेरी जान है,
भारत की पहचान है ;
भारत भाल की बिंदी है,
निज भाषा अभिमान है |
खत्री से बच्चन तक ने,
सींचा जिसे वो प्राण है;
संस्कृत के वृक्ष से निकली,
अद्भुत भाषा महान है |
देश को जोड़े एक सूत्र में,
मधुर-सी एक तान है;
है इसका समृद्ध-साहित्य,
हिन्द की ये शान है |
हिंदी ही पूजा है सबकी,
हिंदी ही अजान है;
होली, दीवाली हिंदी है,
हिंदी ही रमजान है |
देश को विकसित कर सकती,
हिंदी गुणों की खान है;
हिंदी अहित है देश अहित,
हिंदी हिन्दुस्तान है |
हिंदी हिन्दुस्तान है |
Saturday, September 10, 2011
दिलोदिमाग में,
यूँ छाया करो,
पास कभी आओ,
या बुलाया करो;
वफा में जाँ,
हम भी दे देंगे,
बस ठेस न दो,
न रुलाया करो |
Thursday, September 8, 2011
घुमते रहे हम बेफिक्र हो जमाने में, किस्मत उलझी तो अपनो के ही आशियाने में |र हो जमाने में, किस्मत उलझी तो अपनो के ही आशियाने में |
Saturday, September 3, 2011
मयकदे में जाके होने लगे सब मय के दीवाने,
हम तो मयकश निगाहों में डूब कर हुए खुद से बेगाने |
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