Wednesday, December 21, 2011

जिंदगी समस्या देगी तो समाधान भी देगी,
दर्द अगर मिलता है  एक दिन वो जायेगा ,
स्वयं बढ़ना होगा पथ में आगे ,
आगे तुझे बढ़ने कोई फ़रिश्ता नहीं आयेगा .

Tuesday, December 20, 2011

जमाने की ठोकरें तो लगती ही हैं,
सफल वही होता है जो बार बार उठ खड़ा होता है ;
जोशिले जोश में आगे बढ़ते ही चलते हैं,
कायर किस्मत सुधरने के इंतजार में पड़ा होता है 
इंशुरेंस वाले भी कमाल हैं,
गजब सितम ढाते हैं,
मरने का उदाहरण देते हैं,
और प्यार से समझाते हैं 
देखा है सूरमाओ को भी सड़क पे आते हुए,
सड़क वालों को भी कारों पे चलते देखा है;
लोग भरोसा करते हैं बहुत अपनी किस्मत पे,
मैने हाथों की लकीरों को भी बदलते देखा है |

आँसुओ की कभी कोई गिनती नहीं होती,
पर मुस्कान तो बस ऊँगलियों में गिने जाते हैं;
गम तो जीवन में होता है बेहिसाब,
पर खुशी के लम्हें तो बहुत कम ही आते हैं |

रोया न जायेगा चाहे सितम पे सितम कर लो,

कि आँसुओ के बहने की अब इंतहा हो चुकी |
दर्द-ए-दिल समझ के भी कोई अनजान बैठा है ,
लूटने वाला यहाँ बनके महान बैठा है ,
लाश है की हिलने का नाम नहीं ले रही ,
 उधर जनाजों के इंतजार में शमशान बैठा है .
हरियाली ही हरियाली दिखती है तुम्हे,
नज़र घुमा के वो बंजर भी देखो,
खुशनुमा चेहरे तो बहुत देखते हो,
जलती अश्कों का वो मंजर भी देखो 
तेरे आने की जब आहट सी हुई ,
मन -मंदिर में एक छटपटाहट सी हुई ,
पलके बिछ गयी आपके आने की राहों में ,
दिल में एक मीठी सी घबराहट सी हुई .
नाराजगी में भी प्यार दिखाना कोई उनसे सीखे,
बंद लबों से भी कुछ कह जाना कोई उनसे सीखे,
हर एक अदा है उनकी करोड़ों में एक,
मदमस्त आँखों से मुस्कुरा देना कोई उनसे सीखे .

परछाई का साथ कभी छुटता नहीं ऐ दीप,

इंसान को एकाकीपन का एहसास नहीं होने देती |
दिल कहता है कि तेरे करीब आ जाऊं ..

फिर अचानक दूरियों का एहसास खुद ही मिट जाता है ..
रोता है आसमान धरती को याद करके,

पर मिलना शायद इनके नसीब में नहीं 

ये सर्द मौसम और ये राजनीतिक गरमाहट,
चुपके से आती आंदोलन की आहट,
कहीं शोर, कहीं शांति, कहीं द्रोह, कहीं क्रांति,
कहीं से आती षड़यंत्र की सुगबुगाहट |

दिल की धड़कनों में जब कोई बस जाता है,

तस्वीर आती है नजर हर तरफ उसकी ही |
कदम दर कदम दर्द बढ़ता ही गया,

रुलाते रहे खुद हमे चाहने वाले 

दिल में बस कर बेतहाशा धड़काया दिल को,
आँखों में बस कर काजल चुरा लिया ;
शिकायत भी की हमने और बहलाया भी उनको,
पर धीरे-धीरे उन्होने सबकुछ भुला दिया |

खेल शियासत का देख है ये अनोखा,
राजा भी वजीर की चाल चलता है |

आये हो तो दूर तलक साथ भी चलो,

सियासतदानों की तरह यूँ पाला न बदलो |

सोचता हूँ मैं एक काम कर दूँ,
ये रुत ये हवा तेरे नाम कर दूँ;
हाजिर कर दूँ चाँद तारों को तेरे कदमों में,
झिलमिल जुगनुओं को भी तेरा कद्रदान कर दूँ |

ठंड की ठिठुरन को समेट लो रजाई में,

कि वक्त आ गया अब नींद में खोने का |