मेरी शायरी
-प्रदीप कुमार
Friday, August 10, 2012
हर कोई यहाँ मयकश है, हर कोई प्यासा खड़ा है,
कोई शराब में है डूबा,कोई किसीके आँखों में पड़ा है,
दुबे रहना ख्वाबो में बन गई यहाँ फितरत सबकी,
हर मयकश यहाँ स्वयं में एक दूजे से बड़ा है |
आ मेरे आगोश में, हसीं ख्वाब दूँ तुझे,
खो जाऊं तुझमे या बस आदाब दूँ तुझे,
जज्बातों की आँधियों में संग उड़ चलूँ तेरे,
कुछ सवाल मैं करूँ कुछ जवाब दूँ तुझे |
महंगाई बेशक फर्श से अर्श तक पहुंचा,
पर जमीर तो दिन-ब-दिन सस्ता हो रहा |
आने लगी हैं सदायें अब फूलों के चटकने की भी,
कि गुलिश्ताँ भी अब खिलने पे अफसोस कर रहा |
Monday, August 6, 2012
क्या हुआ जो तूने ये लब सिल रखे, आँखों ने तेरी सब बयां कर दिया,
माना प्यार है खामोशयों से तुझे, तेरी धड़कनों ने शोर यहाँ वहाँ कर दिया,
जज़्बातों को छुपाए रखो दिल में, ये एक हसीन अदा है तुम्हारी,
बचते रहे मुझसे अक्सर लेकिन, मेरे इश्क़ ने मशहूर तेरा जहां कर दिया |
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