Friday, May 27, 2011

पहचान उनकी होती है ऐ "दीप" जो कि महान हैं,
हम तो बस एक अदना सा इंसान हैं;
पर हम भी किसी के दिल के बादशाह हैं,
अपनी अलग कायनात के शहंशाह हैं ।
खुश हूँ कि धरातल पर का एक इंसान हूँ,
भगवान के नियति का कद्रदान हूँ;
जिंदगी तो कुछ क्षणों की मेहमान है,
सफल वही जो झेलता तूफान है ।
मानव होने का मुझको गुरुर है,
परहितकारी बनूँ ये शुरुर है;
अपनो का पेट भर लेता हर जीवित जान है,
मनुष्य वही पर अश्रु में जिसके प्राण है ।

Thursday, May 26, 2011

सपने होते ही हैं दिल-ए-अंजुमन को सजाने के लिए ऐ "दीप",
पर जरुरी नहीं कि हर आरजू पूरी ही हो जाए ।
रेत को चाहो तो मुठ्ठी मे भरकर उठालो,
अंततः हाथों में रेत के कण बस कुछ ही रह पाए ।

Tuesday, May 24, 2011

राह-ए-जिन्दगी में करोड़ों से होती है मुलाकात,
ऐ "दीप" हर शख्स दिल का सहारा नहीं होता ।
समन्दर में चाहे जिस ओर मोड़ लो कश्ती,
अफसोस! हर तरफ एक किनारा नहीं होता ।

Monday, May 23, 2011

सब कहते हैं मैं एक दिल फेंक बंदा हूँ,
मैं नहीं कभी किसी के गले का फंदा हूँ,
दुनिया क्या समझे मैं आखिर हूँ क्या चीज,
पर "दीप" कहे दिल का बड़ा नेक बंदा हूँ ।
चिंता नहीं चिंतन से प्यार है मुझको,
आत्म मंथन से कब इनकार है मुझको,
"दीप" कहे अत्यन्त कठिन स्वयं को समझना,
अंतरात्मा के आवाज से सरोकार है मुझको ।

Saturday, May 21, 2011

शायर मैं नहीं पर शायराना है अन्दाज मेरा,
शब्दों में उकर जाता है जज्बात मेरा,
सौगात सी हैं मेरे ये दिल के हिन्डोले,
आशिक मैं नहीं पर आशिकाना है मिजाज मेरा ।
हिमाकत तो मैंने भी की एक राज बताने की,
दिल ने कहा यह भी कोई वजह हुई सताने की,
अंजुमन में अचंभित करती रोशनी सी फैल गई,
पर वो तो घबरा से गये जब बारी आई जताने की ।
एक अदा उसकी दिल चुराने की,
एक अदा उसकी दिल में समाने की,
एक अदा उसकी मुस्कुराने की,
और एक जिद मेरी उसे पाने की ।

Thursday, May 19, 2011

गुल से गुलशन महक उठे हर रात ठहर जाए ,
मन बावला मचल उठे जज्बात पे अड़ जाए ;
मरुभूमि के तपते तन पर ओंस जो पड़ जाए ,
गर्मी के मौसम में यूँ बरसात जो पड़ जाए ।

Tuesday, May 17, 2011

गम-ए-जिंदगी न नाराज हो इस कदर,
मेरे नसीब में आने को तू बेकरार है किस कदर;
माना कि हर जिंदगी में तेरा दखल है बड़ा,
पर मेरी जिंदगी के न करीब आ इस कदर ।
जीवन की है रीत अनोखी, जीवन जल से चलता है ;
है 'प्रदीप' जल विकट समस्या, जल बिन जीवन जलता है ।

Sunday, May 15, 2011

राह-ए-जिंदगी अगर इतना ही सुगम होता,
संघर्ष करने में अगर कोई गम न होता;
जिंदगी की महत्ता लोग समझ ही न पाते,
एक-एक कदम अगर यूँ दुर्गम न होता ।
सच्चाई का आज के जमाने में क्या वजन है,
भ्रष्टाचारियों का ही तो यहाँ सफल जनम है,
देश की जनता हर तरफ महँगाई से त्रस्त है,
और सरकारी तंत्र पूरी घोटालों में मगन है ।