Tuesday, October 22, 2013

खुद पर ही खुद का न जाने कब कितना सितम होता है,
मिलने का उनसे हजारों तरह का क्या-क्या जतन होता है;
करीब होते हैं तो लब चुप और सिर्फ आंखे ही बोलती हैं,
होंठ थिरकते हैं "दीप" जब मुलाक़ात का वक़्त खतम होता है |


Monday, October 21, 2013

तेरी यादें घूमती रहती हैं मेरे दिल के चक्रवात में,
तुझे भूल नहीं हूँ पता तेरे प्यार के झंझावात में |
मेरे मिट जाने की दुआएँ वो करता रहा उम्र भर,
हम हैं कि दिन ब दिन तंदरुस्त होते चले गए |
दुआओं में अगर असर न होता,
अंधेरी रात का फिर सहर न होता,
न होती होठों पे खिलखिलाती हंसी,
हृदय को हिलकोरता ये लहर न होता |