मेरी शायरी
-प्रदीप कुमार
Monday, December 17, 2012
देखो बु आ रही है ये दुनिया जलने की,
आज राह देखता सूरज शाम ढलने की,
जिंदगी हर एक की यहाँ पशोपेश में "दीप",
एक चुनौती है वक़्त के साथ चलने की |
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