मेरी शायरी
-प्रदीप कुमार
Thursday, November 20, 2014
पलक झपक कर खोला तो नजारा कुछ और था,
था मैं कहीं और पर अब कहीं और था,
जिन्दगी सिखाती है हरवक्त अलग ही पाठ,
पर वो समझ न आया जिसमें फरमाया गौर था |
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