Saturday, February 13, 2016

हनुमंथप्पा देश तुम्हें, करता है प्रणाम ।
जीत हिम को मौत से हारे, ले लो आखरी सलाम ।।

ले लो आखरी सलाम, देशहित जान गँवाई ।
प्रकृति की मार झेल भी, करते रहे अगुवाई ।।

वीर आत्मा को शांति, दे स्वयं गणपति बप्पा ।
जीवटता की प्रेरणा, दे गए हनुमंथप्पा ।।

-प्रदीप कुमार साहनी

Thursday, January 28, 2016

रह गई जिन्दगी से ये इतनी सी इल्तजा,
तू मेरी नहीं ये आँख बंद कर मानने बैठा ।

तेरे ख्वाहिशों का दामन जो थामने बैठा,
देखने औकात अपनी आईने के सामने बैठा ।

"प्रदीप"
तू होती गई जब दूर मुझसे,
मैं तुझमे ही और खोता गया,
भीड़ बढ़ती गई महफिल में,
मैं तन्हा और तन्हा होता गया ।

तू खुद की ही करती रही जब,
मैं तेरे ही सपने पिरोता गया,
तू खुशियों में नाचती गाती रही,
मैं तो याद कर तुझे रोता गया ।

"प्रदीप"
दर्द देने के लिए और भी कई बहाने थे,
ऐ खुदा, मोहब्बत को ही क्यों चुना तूने,
और भी कई मांगे थी मेरी तुमसे,
एक सनम दे दो वाली बात को ही क्यों सुना तूने ।
चोट दिखते नहीं पर जख्म बहुत गहरा है,
वक्त आज भी उसी जगह पे ठहरा है,
तुमने तो फेर ली थी निगाहें बस यूँ ही,
पर दिल पेे आज भी तेरी यादों का पहरा है..

"दीप"
नैनों से टपके दो बूँद नीर ने वो सब कह दिया,
सौ अल्फाज भी जिसे मुकम्मल बयाँ न कर पाये...
विरोध करने का अलग ही तरीका है ये,
सड़क जाम करते हैं जला फटा हुआ टायर...
असल लिखने में खून सुख जाता सबका,
भरे हैं यहाँ कई कॉपी-पेस्ट वाले शायर..
किसी की आह के लिए, या गुनाह के लिए,
लिखता नहीं कभी वाह वाह के लिए,

बंदगी ही तो करता हूँ, गर कलम उठाता हूँ,
पन्ने भर देता हूँ, बस एक चाह के लिए...
रहने दो मुझे अब इन सांपों की इस बस्ती में ऐ "दीप",
इंसानों का काटा झेल आया हूँ, जहर मुझपे क्या असर करेगा...
जरा मुस्कुरा दो एक बार फिर तुम पूरे सिद्दत से,
हसरत मिटती नहीं तुझे मुस्कुराते हुए देखने की...