मेरी शायरी
-प्रदीप कुमार
Thursday, November 20, 2014
पलक झपक कर खोला तो नजारा कुछ और था,
था मैं कहीं और पर अब कहीं और था,
जिन्दगी सिखाती है हरवक्त अलग ही पाठ,
पर वो समझ न आया जिसमें फरमाया गौर था |
3 comments:
Manish Kumar Singh
said...
nice line
January 7, 2015 at 11:30 PM
Tayal meet Kavita sansar
said...
बहुत सुन्दर सृजन, बधाई
April 14, 2015 at 1:42 PM
Braj
said...
वेहतरीन पंक्तियां
January 27, 2016 at 7:33 PM
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nice line
बहुत सुन्दर सृजन, बधाई
वेहतरीन पंक्तियां
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