ठण्ड पाँव पसार चुका है गहराई में,
दुबक गये हैं सब अपनी-अपनी रजाई में,
चलो चले एक ऐसी दुनिया, कहते हैं जिसे स्वप्न नगर,
खो जाते हैं निंदिया रानी के अंगड़ाई में |
दुबक गये हैं सब अपनी-अपनी रजाई में,
चलो चले एक ऐसी दुनिया, कहते हैं जिसे स्वप्न नगर,
खो जाते हैं निंदिया रानी के अंगड़ाई में |
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