मेरी शायरी
-प्रदीप कुमार
Thursday, January 28, 2016
रहने दो मुझे अब इन सांपों की इस बस्ती में ऐ "दीप",
इंसानों का काटा झेल आया हूँ, जहर मुझपे क्या असर करेगा...
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