मेरी शायरी
-प्रदीप कुमार
Monday, September 10, 2012
रोशनदानों से भी अक्सर झाँकते हैं अँधेरे,
वादियों में भी कहाँ बयार नजर आते हैं;
नकली चेहरा लिए बस घूमते हैं इंसान,
हर तरफ रंगे हुए सियार नजर आते हैं |
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