मेरी शायरी
-प्रदीप कुमार
Sunday, September 9, 2012
जिंदगी उलझनों से भरी है तो क्या ऐ "दीप",
उलझनें ही अक्सर उलझनों को सुलझाने का जज़्बा देती हैं |
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