Saturday, September 29, 2012

अकेला-सा हूँ, तन्हा हूँ तेरे बगैर,
इत्ती सी बात भी तेरे पल्ले नहीं पड़ी;
छोड़ जाते हो तनहाई के समंदर में,
क्यों दूर जाने की रहती है हड़बड़ी |

1 comment:

S.N SHUKLA said...


सुन्दर और सार्थक सृजन , बधाई.